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 माली या सैनी जाति की उत्पत्ति


यूं तो सनातन हिंदू धर्म मैं किसी भी जाति वर्ग के इतिहास को लेकर हजारों किंवदंतियों हैं चाहे वह ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य या शुद्ध हो पर किसी भी इतिहासकार या विद्वानों के द्वारा जाति की उत्पत्ति के लिए दिए गए सिद्धांत को दो भागों में जोड़कर दिखाया वह दर्शाया जाता है | 


पहला पौराणिक उत्पत्ति वह दूसरा कर्म के आधार पर उत्पत्ति |


सनातन धर्म में सभी जाति वर्ग कर्म के आधार पर ही  थे ,वह माने गए हैं | आज हमारे द्वारा इस ब्लॉग पोस्ट से आप सभी को समाज की उत्पत्ति का वर्गीकरण इन्हीं दोनों आधार पर बताया जा रहा है


पहला :-  पौराणिक उत्पत्ति माली या सैनी समाज की उत्पत्ति के बारे में पुराणों प्राचीन ग्रंथों मैं उल्लेख मिलता है जिसमें महादेवजी ने अपने रहने के लिये कैलाशवन बनाया तो उसकी हिफाजत के लिये अपने मैल से पुतला बनाकर उस में जान डाल दी और उसका नाम "वनमाली" रखा। फिर उसके दो थोक अर्थात् वनमाली और फूलमाली हो गए। जिन्होनें वन अर्थात् कुदरती जंगलों की हिफाजत की और वे वनमाली कहलाये और जिन्होनें अपनी अक्ल और कारीगरी से पड़ी हुई जमीनों में बाग और बगिचे लगाये और उमदा-उमदा फूलफल पैदा किये, उनकी संज्ञा " फूलमाली " हुई।

मालियों के भाट उनका सम्बंध देवताओं से जोड़ते है और कहते है कि

 जब देवताओं और दैत्यों द्वारा समुन्द्र मथने से जहर पैदा हुआ था तो उसकी ज्वाला से लोगों का दम घुटने लगा। महादेव जी उसको पी गये, लेकिन उसे गले से नीचे नहीं उतारा। इस सबब से उनका गला बहुत जलने लगा था जिसकी ठंडक के लिये उन्होने दूब भी बांधी और सांप को भी गले से लपेटा। लेकिन किसी से कुछ आराम न हुआ तब कुबेरजी के बेटे स्वर्ण ने अपने पिता के कहने से कमल के फूलों की माला बनाकर महादेवजी को पहनाई। उससे वह जलन समाप्त हुई। महादेव जी ने खुश होकर स्वर्ण से कहा - हे वीर! तूने मेरे कण्ठ में वनमाला पहलाई है। इस से लोक अब तुझकों वनमाली कहेगे। महादेव जी से स्वर्ण को जब वरदान मिला तो सब देवता और दैत्य बहुत प्रसन्न हुए। उसे वे महावर पुकारने लगे। 


दूसरा तथ्य :-    इतिहासकारों के द्वारा प्राचीन हिंदू क्षत्रियों  से उत्पत्ति अर्थात क्षत्रिय होना माना गया है | कालांतर में या इतिहास में हिंदू धर्म के दूसरे वर्ण क्षत्रिय धर्म से हमारी उत्पत्ति होना इसीलिए प्रमाणिक माना गया है कि हमारे  समाज में पाए जाने वाले गोत्र वह वंश अधिकतर वर्तमान क्षत्रिय वंश से मेल खाते हैं अर्थात दोनों समाजों का रिश्ता भाइयों का रहा है  इतिहासकारों व विद्वानों के द्वारा इनकी प्रमाणिकता भी दी गई है वह हमारे योद्धाओं का जिक्र भी कई क्षत्रिय राजाओं के द्वारा अपने भाटो व चरणों के द्वारा करवाया गया है |

परंतु माली सैनी समाज का मूल कर्म वर्तमान में खेती किसानी में साग बाग , फूल बाग ,दूध व्यवसाय का रहा है परंतु कालांतर से लेकर वर्तमान तक हमारे द्वारा किए गए हमारे कर्मों को कभी भी वह सम्मान नहीं मिल सका वर्तमान में भी समाज की स्थिति कुछ ऐसी ही है खेती किसानी में हमारे द्वारा किए गए नवा चारों वह क्रांतिकारी परिवर्तन का फायदा देश और तरक्की में हुआ लेकिन उसका श्रेय वर्तमान में देश में मौजूद तथाकथित किसानों वह एक विशेष वर्ग के द्वारा ले लिया गया है |


       हमारे द्वारा इन सभी तथ्यों का प्रमाणिक विस्तृत उल्लेख समय-समय पर वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाएगा

                                            सभी सामाजिक बंधु अपना सहयोग निरंतर जारी रखें

                                                                    जय शूरसेन  

                                                                      धन्यवाद 

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